सीधी-शासन द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों में लाखों रुपए खर्च करके हर वर्ष वृहद वृक्षारोपण कराया जाता है। कुछ साल बाद वृक्षों के बड़े होने पर आसपास के अतिक्रमणकारियों द्वारा उनकी कुल्हाड़ी से कटाई कर गायब कर दिया जाता है। धीरे-धीरे वृक्षारोपण स्थल पर झुग्गी-झोपड़ी बनाकर अतिक्रमण कर लिया जाता है और वन विभाग की भूमि पर ही खेती बाड़ी का काम भी शुरू कर दिया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में यही सबकुछ सालों से हो रहा है। ऐसा ही मामला सीधी जिले के चुरहट वन रेंज अंतर्गत शिकारगंज एवं अमिलई का सामने आया है। ग्रामीणों के अनुसार चुरहट रेंज के सर्किल बघवार अंतर्गत बीट शिकारगंज आर 1131, आर 1132 एवं बीट अमिलई 1128, 1127, 1122, 1123 में पूर्व में सागौन का बृहद रोपण स्थल पर कराया गया था। सागौन के वृक्षों के कुछ बड़े होने पर अतिक्रमणकारियों द्वारा सुनियोजित तरीके से उन्हें काटकर गायब कर दिया गया। बाद में खाली भूमि में झुग्गी.झोपड़ी एवं मकान का निर्माण कर खाली भूमि में खेती-किसानी का काम भी शुरू कर दिया गया। हैरत की बात तो यह है कि वन रेंज चुरहट द्वारा बीटगार्डों की नियुक्ति भी की गई है। सागौन के बेशकीमती वृक्षों की कटाई कर गायब करने एवं खाली भूमि में झुग्गी-झोपड़ी का निर्माण कार्य होने के बाद भी वन रेंज के अधिकारियों को कोई सूचना नहीं मिली। ऐसे में स्पष्ट है कि सागौन के हरे वृक्षों की कटाई एवं स्थल पर भूमि खाली कर झुग्गी-झोपड़ी एवं मकानों का निर्माण करने के मामले में बीटगार्डों का भी खुला संरक्षण रहा है। शासन द्वारा लाखों रुपए खर्च करके सागौन के वृक्षों का वृहद रोपण कराया गया था। जिससे यहां की भूमि हरी-भरी हो सके। विडंबना यह है कि अतिक्रमणकारियों द्वारा लाखों रुपए के वृक्षों को काटकर गायब कर दिया गया और वन भूमि में अतिक्रमण कर खेती-किसानी का कार्य भी बेखौफ होकर किया जा रहा है। फिर भी वन विभाग के मैदानी अमले को कोई जानकारी नहीं है और वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारी भी वृक्षारोपण स्थल का जायजा लेने की जरूरत नहीं समझते। इसी मनमानी के चलते ही यहां वन मंडल को भारी क्षति उठानी पड़ रही है और हरे वृक्षों की कटाई कर गायब करने वाले लोग यहां झुग्गी-झोपड़ी बनाकर अतिक्रमण करते हुए किसान बन चुके हैं। तत्संबंध में क्षेत्रीय ग्रामीणों ने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि वनों की सुरक्षा में लगे वन विभाग के कर्मचारी पूरी तरह से लापरवाह हैं। उनके द्वारा वन क्षेत्रों में भ्रमण कर स्थिति की जानकारी लेने की जरूरत नहीं समझी जाती। यदि कहीं अतिक्रमण एवं अवैध कटाई का मामला सामने आता है तो उनके द्वारा अपने स्तर पर ही सौदेबाजी कर मामले को दबा दिया जाता है। वन मंडल के अधिकारियों को शासन की ओर से वाहन की सुविधा मिलने के बाद भी वह अपने कार्यालय से निकलकर वन क्षेत्रों का भ्रमण करने की जरूरत नहीं समझते और न ही वृक्षारोपण स्थल की स्थिति जानने की आवश्यकता मानते।