सीधी जिले में 2 करोड़ के कन्या छात्रावास भवन में भ्रष्टाचार, घटिया सामग्री का हो रहा उपयोग!
कुसमी (सीधी) आदिवासी अंचल कुसमी में बन रहे 2 करोड़ रुपये के कन्या छात्रावास भवन में घटिया निर्माण सामग्री का उपयोग और मानकों की अनदेखी का मामला सामने आया है। निर्माण के दौरान इस भवन में भारी लापरवाही बरतने के आरोप स्थानीय ग्रामीणों ने लगाए हैं। खासकर, नींव में कमजोर सामग्री और भवन की ऊंचाई का गलत आकलन करने से भविष्य में जलभराव और निर्माण के समतलीकरण की समस्या हो सकती है।
ग्रामीणों का कहना है कि भवन का प्लिंथ सड़क से काफी नीचे बना दिया गया है, जिससे भविष्य में पानी का भराव और भवन की स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं। इसके अलावा, निर्माण में घटिया ईंटों और कम लोहा इस्तेमाल करने का आरोप भी ठेकेदार और इंजीनियर पर लगाया जा रहा है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस परियोजना के लिए जो स्टीमेट तैयार किया गया, उसमें भवन के लेवल और स्थल निरीक्षण की अनदेखी की गई। यदि अधिकारियों ने सही दिशा-निर्देश दिए होते, तो भवन अधिक मजबूत और मानकों के अनुरूप होता।
इंजीनियरों और ठेकेदार की मिलीभगत के चलते यह कार्य जारी है, और ग्रामीणों ने इसकी जांच की मांग की है। हालांकि, अधिकारियों का इस पर कोई ठोस जवाब नहीं आया है। यहां तक कि निर्माण स्थल पर सूचना बोर्ड तक नहीं लगाया गया है, जिससे लोग यह जान नहीं पा रहे हैं कि यह परियोजना किसके द्वारा संचालित की जा रही है।
ग्रामीणों की मांग:
ग्रामीणों और स्थानीय नेताओं का कहना है कि इस पूरे मामले की जांच उनके सामने की जाए, ताकि दोषी अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके और कन्या छात्रावास के निर्माण की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके।
क्या कहते हैं ठेकेदार और इंजीनियर?
ठेकेदार सभाजीत सिंह ने कहा कि उनके पास जो दिशा-निर्देश थे, उन्हीं के अनुसार कार्य हो रहा है और अगर अधिकारियों ने सही सलाह दी होती तो भवन सड़क के स्तर पर ज्यादा मजबूत तरीके से बनाया जा सकता था। वहीं, इंजीनियरों का कहना है कि कार्य में कोई गड़बड़ी नहीं है, और सभी नियमों का पालन किया जा रहा है, हालांकि उन्होंने किसी भी जांच का कोई ठोस जवाब नहीं दिया है।
निर्माण कार्य की जांच की आवश्यकता:
यह मामला सीधी जिले में सरकारी परियोजनाओं में भ्रष्टाचार और निर्माण की गुणवत्ता पर सवाल खड़े करता है। स्थानीय लोगों और नेताओं ने मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है ताकि इस तरह के लापरवाह निर्माण से बचा जा सके और आदिवासी क्षेत्र में सरकार के द्वारा किए जा रहे विकास कार्यों में पारदर्शिता बनी रहे।