Sidhi24news:कागजों पर हो रहा सास-बहू सम्मेलन, लक्ष्य से दूर एनएचएम की पहल
मिशन परिवार विकास
तीन वर्ष पहले राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत हुई थी पहल, हर तिमाही आशा कार्यकर्ताओं को ग्राम आरोग्य केंद्र पर करना है आयोजन
परिवार नियोजन की समझाइश देने के साथ स्वयं व बच्चे की स्वास्थ्य देखभाल के बारे में सास-बहू और पति को करना है जागरूक
सीधी-राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने मध्य प्रदेश सहित देश के सात राज्यों के उच्च जन्म दर वाले लगभग डेढ़ सौ जिलों में मिशन परिवार विकास की शुरुआत करते हुए तीन गतिविधियों सारथी वैन, नई पहल और सास-बहू सम्मेलन को शामिल किया था। सास-बहू सम्मेलन में यह उम्मीद की थी गई कि इसके माध्यम से समझाइश देने से परिवार नियोजन को बढ़ावा मिलेगा तो शिशु-मातृ स्वास्थ्य से जुड़े कार्यक्रमों को बेहतर तरीके से लागू किया जा सकेगा। शुरू में ग्राम आरोग्य केंद्रों पर इसके आयोजन की पहल हुई, लेकिन बाद में धीरे-धीरे सम्मेलन कागजों के हवाले हो गया। ग्रामीण क्षेत्रों में तैनात स्वास्थ्य विभाग के निगरानी
अमले की मानें तो अब आशा कार्यकर्ताओं से इस आयोजन के प्रपत्र भरा लिए जाते हैं। हर तीन
कार्यालय मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी
महीने में ग्राम आरोग्य केंद्र पर सास-बहू सम्मेलन हो रहे या नहीं इसकी सुध अब कोई नहीं लेता। सम्मेलन के लिए सीबीएमओ को बजट दिया जाता है। जिसे बीसीएम निकालते हैं, मगर उसका क्या होता है ये कोई नहीं जानता। कभी किसी आशा के खाते में एकमुश्त राशि डालकर निकाल लेने की बात स्वास्थ्य कर्मी बताते हैं। जिला स्तर के अधिकारी भी ग्रामीण क्षेत्रों में पीएचसी, सीएचसी, हेल्थ सब सेंटर व ग्राम आरोग्य केंद्रों का निरीक्षण करने अमूमन नहीं निकलते। जब सेवाओं का जायजा लेने के लिए कोई बाहरी टीम आती है तभी अधिकारियों का भ्रमण इन संस्थाओं में होता है, जबकि इनका नियमित निरीक्षण होते रहना चाहिए।
जिले में लगभग तीन साल पहले हुई थी शुरुआत:
मिशन परिवार विकास के अंतर्गत तीन गतिविधियों सारथी वैन का संचालन, नई पहल में फेमिली प्लानिंग किट वितरण व सास-बहू सम्मेलन की शुरुआत करीब तीन वर्ष पहले हुई थी। सारथी रथ को गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक करना है तो पहल में आशा परिवार नियोजन से जुड़े साधनों का वितरण करने के साथ हर तीन माह में ग्राम आरोग्य केंद्र पर सास-बहु सम्मेलन करेगीं।
सास-बहू सम्मेलन के लिए अलग से मिलता बजट:-
हर तीन माह पर सास-बहू सम्मेलन का आयोजन करना है। इसमें पहली बार मां बनने वाली महिलाओं व उनकी सास संग सम्मेलन कर उन्हें परिवार नियोजन के लाभ बताने हैं तो शिशु व मातृ स्वास्थ्य सहित विभागीय योजनाओं की जानकारी भी देनी है। इसमें पांच सौ रुपये चाय पानी के लिए तो आशा एवं प्रति हितग्राही सौ रुपये अलग से मिलते हैं। आशा सहयोगिनी को ढाई सौ रुपये दिए जाते हैं। स्वास्थ्य कर्मी बताते हैं कि जिले के पांचो ब्लॉकों में करीब 2500 आशा (एक्रीडेटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट) तैनात बताई जा रही हैं। साल में प्रति ब्लॉक करीब दस लाख बजट सास-बहू सम्मेलन के लिए आवंटित होने की जानकारी स्वास्थ्य कर्मी देते हैं।
आशाओं के ऊपर 48 तरह की गतिविधियों का जिम्मा
आशा को अपने कार्य क्षेत्र में 48 तरह के कार्यक्रमों व गतिविधियों का संचालन करने के साथ सर्वे आदि भी करना होता है। इसके लिए कार्यक्रमवार इंसेंटिव का निर्धारण किया गया है। यदि सभी कार्यक्रमों का निर्धारित गाइडलाइन के अनुसार पालन किया जाए तो जिले से कुपोषण, एनीमिया सहित कई अन्य ऐसी बीमारियों की रोकथाम हो सकती है।
नहीं उठता सीएमएचओ का फोन
जब सास-बहू सम्मेलन के संबंध में सीएमएचओ से जानकारी लेने का प्रयास किया गया तो सीएमएचओ का फोन नहीं उठा।विभागीय सूत्र बताते हैं कि सीएमएचओ सिर्फ स्कार्पियो मे सवार होकर एसी का आनंद लेते हुए बाजार भ्रमण करने में काफी माहिर हैं।