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बघेली लोक गीतों के विस्तार में जुटी हैं मान्या पाण्डेय

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बघेली लोक गीतों के विस्तार में जुटी हैं मान्या पाण्डेय

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रीवा शहडोल संभाग के हर जिलों में आयोजित होंगा लोकरंग महोत्सव

रामनगर, मैहर व सतना में हो चुका भव्य आयोजन

सीधी। उत्थान सामाजिक सांस्कृतिक एवं साहित्यिक समिति सीधी द्वारा बघेली लोक संस्कृति, लोक कलाओं एवं पारम्परिक तत्वों के संरक्षण, संवर्धन एवं मंचीय प्रदर्शन को विस्तार देने के उद्देश्य से शहडोल एवं रीवा संभाग के सम्पूर्ण जिलों में ‘विंध्य लोकरंग महोत्सव’ का आयोजन किया जा रहा है |

विंध्य लोकरंग महोत्सव में बघेली लोक गीतों और कलाओं के संरक्षण एवं विस्तार कार्य में जुटी राष्ट्रीय लोक गायिका मान्या पाण्डेय बघेली लोक गीतों का गायन करती हैं | मान्या पिछले आठ वर्षों से बघेली गीतों का गायन कर रही हैं | मान्या को अब तक 1000 हजार से अधिक बघेली लोकगीत मुंहजबानी याद हैं |

विंध्य लोकरंग महोत्सव को लेकर स्थानीय स्तर पर लोगों में काफी उत्साह देखने को मिल रहा है | विंध्य लोकरंग महोत्सव का शुभारंभ मैहर जिले के रामनगर में 13 मई को किया गया। उसके बाद मां शारदा की नगरी मैहर में 14 मई और सतना में 16 मई को महोत्सव का आयोजन किया गया। रामनगर, मैहर, सतना में महोत्सव का सारा आयोजन स्थानीय समाजसेवियों व्दारा किया गया। जिसमें हजारों की संख्या में श्रोता बघेली लोक गीतों को सुनने के लिए पहुंचे एवं सबने विलुप्त होती लोकगायन परंपरा को बचाने के लिए प्रयासरत कलाकारों का खूब उत्साहवर्धन भी किया | स्थानीय संयोजकों एवं सहयोगियों ने अपनी अपनी तरफ से कलाकारों का सम्मान भी किया और पुनः आयोजन के लिए बुलावा भी दिया | शहडोल संभाग में विंध्य लोकरंग महोत्सव का आयोजन आज 19 मई से शहडोल से होगा और 20 मई को अनूपपुर एवं 22 मई को उमारिया में किया जायेगा। तदोपरांत 25 मई को सिंगरौली व 27 मई को मऊगंज में किया जायेगा।

विंध्य लोकरंग महोत्सव में राष्ट्रीय लोक गायिका मान्या पाण्डेय के साथ लोक गायक नरेन्द्र सिंह, कपिल तिवारी, हरिश्चंद्र मिश्रा, प्रत्युष द्विवेदी, श्रुति सिंह, सुभी सिंह, वादक रावेंद्र तिवारी, कर्णवीर सिंह, पवन शुक्ला, रजनीश जायसवाल एवं मंच व्यवस्थापक निर्भय द्विवेदी, मनोज विश्वकर्मा,कमल पाण्डेय आदि दल के रूप प्रत्येक आयोजनों में शामिल होते हैं |

लोक संस्कृति बचाने की जरूरत – नरेंद्र

   बघेलखंड की लिखित परंपरा भले ही उतनी समृद्ध न हो लेकिन वाचिक परंपरा काफी समृद्ध और विविधतापूर्ण है। पिछले 20 वर्षों में लोक के प्रति लोगों की हीन भावना और लोक कलाओं व कलाकारों को उचित सम्मान व मंचीय प्रदर्शन को विस्तार न मिलने के कारण बघेली बोली की बहुत सारी गायन एवं नर्तन विधाएं विलुप्त हो गई हैं या विलुप्तता की कगार पर हैं | आज की पीढ़ी अपने बूजर्गों के पास बैठना नही चाहती और न ही वाचिक परंपरा से पीढ़ी दर पीढ़ी आए लोक ज्ञान व गायन परंपरा को सीखने में कोई दिलचस्पी दिखाती अतः मौखिक परंपरा का लोक भंडार अब क्षीण हो गया है | 

मान्या पाण्डेय ने लोक गीतों के संरक्षण और उनके विविध मंचों पर गायन का अभियान शुरू किया है | यह अपने आप में मिसाल तो है ही साथ ही नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा की तरह है | मान्या ने यह अहसास कराया की हमारी पहचान हमारी लोक संस्कृति से ही है इसे बिना साथ लिए या इसे किनारे कर हम बघेली बोली बानी क्षेत्र के लोग कभी पूरे नही हो पाएंगे |

मान्या ने बघेली बोली के विविध गीतों को राष्ट्रीय मंचों तक पहुंचा रही हैं | उनके इस कदम ने निश्चित रूप से बघेली गीतों में कुछ नया करने और उन्हें बेहतरी की ओर ले जाने की दिशा में गुंजाइश पैदा हुई है |

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