आंख के सामने अस्पताल लेकिन नहीं मिलता कभी इलाज
सीधी जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र पोखरा में संचालित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र केवल लोगों को देखने के लिए है यहां डॉक्टर के दर्शन कम ही होते हैं। केवल एक नर्स के भरोसे यह अस्पताल खुलता है और बंद हो जाता है। डॉक्टर के न होने के चलते एक तो यहां मरीज आते ही नहीं है और जो यहां पहुंचते हैं तो नर्स द्वारा ओपीडी लेकर उन्हें दवाइयां दे दी जाती है। कहने को तो यहां दो-दो चिकित्सक डाक्टर विश्वास सिंह व एक अन्य महिला चिकित्सक पदस्थ हैं। लेकिन यहां रहता कोई नहीं है खाली कुर्सी इस बात का सबूत है।
महज 6 बिस्तर वाला प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पोखरा जहां दो-दो चिकित्सकों की नियुक्ति है यहां पर स्टाफ नर्स हैं एएनएम है साथ ही एक भृत्य भी है लेकिन इसकी दुर्दशा यह है कि ग्रामीणों को यहां इलाज कभी नहीं मिल पाता। मजबूरन लोगों को झोलाछाप की शरण में जाना पड़ता हैं। नियम की बात करें तो सुबह 9 से दोपहर 2 बजे तक प्रत्येक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ डॉक्टर द्वारा ओपीडी लेने का प्रावधान है लेकिन पोखरा स्वास्थ्य केंद्र में अक्सर डॉक्टर नदारद रहते हैं। यहां केवल एक भृत्य और एक स्टाफ नर्स बैठे हुए पाए जाते हैं। इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर आसपास के करीब 25 से अधिक गांवो कि स्वास्थ्य व्यवस्था का जिम्मा है। लेकिन जिम्मेदारों कि अनदेखी के चलते लोगों को परेशान होना पड़ता है। दूर दराज से इलाज की आस लेकर आने वाले लोगों को मौजूद स्टाफ द्वारा दवाइयां देकर वापस लौटा दिया जाता हैं यहां पर दो-दो चिकित्सक पदस्थ भले ही हैं लेकिन अक्सर गायब ही रहते हैं। सूत्रों की माने तो कई बार इन पर कार्यवाही भी हुई है। लेकिन उनकी आदत में सुधार नहीं आया है। अस्पताल के भीतर देखने पर वहां ना तो कोई मरीज ही दिखा ना ही कोई स्टाफ पूरा अस्पताल खाली जो कुछ कर्मचारी थे भी वह बाहर धूप ले रहे थे। ओपीडी रजिस्टर में दो.चार नाम अंकित थे जिन्हें दवा देकर वापस कर दिया गया था ग्रामीणों ने बताया कि यहां अक्सर ऐसा ही हाल रहता है
घर के सामने अस्पताल लेकिन नहीं मिलता कभी इलाज
पोखरा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के सामने निवास करने वाले हरि भगत सिंह का कहना है कि उनके घर के सामने बेशक अस्पताल स्थित है लेकिन उन्हें कभी इसका लाभ नहीं मिलता यहां अक्सर डॉक्टर रहते नहीं है। कभी-कभार आते हैं, कभी अस्पताल जाओ तो दवाएं ही नहीं मिल पाती। मजबूरन गांव में बैठने वाले बंगाली डॉक्टर के पास जाना पड़ता है।
बंगाली डॉक्टर के भरोसे जिंदा है
गांव के ही ग्रामीण वीर बहादुर सिंह का कहना है कि पोखरा स्वास्थ्य केंद्र केवल नाम का स्वास्थ्य केंद्र है। यहां ना तो दवाइयां मिलती है और ना ही डॉक्टर रहते। डॉक्टर कब आते हैं और कब जाते हैं यह किसी को नहीं पता, हम लोग तो केवल बंगाली डॉक्टर के भरोसे ही जिंदा है।
शासन द्वारा लाखों रुपए खर्च कर स्वास्थ्य केन्द्रो में चिकित्सकों एवं अन्य स्टाफ की भर्ती की जाती है। दवाई मुहैया कराई जाती हैं और बजट का एक बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च किया जाता है। लेकिन जिस उद्देश्य के लिए स्वास्थ्य केंद्र बनाए गए हैं। उनकी पूर्ति शायद ही कभी हो पाती है। पोखरा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में दूर दराज से आने वाले लोगों को तो सेवाएं नहीं मिल पाती लेकिन आसपास रहने वाले जो लोग हैं। वह महज अस्पताल को देखते रहते हैं लेकिन बीमार पड़ने पर झोलाछापों की शरण में जाते हैं इसमें कहीं ना कहीं विभाग की उदासीनता एक मुख्य कारण है जिसके कारण यहां पर पदस्थ चिकित्सकों के हौसले बुलंद है और वह मनमानी करते रहते हैं।