प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रो का हाल बेहाल,अक्सर लटकते है ताले
डाक्टरों कि मनमानी पड़ रही आम लोगों के स्वास्थ्य पर भारी
सीधी_ सीधी जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से चरमराई हुई है, शहरी जिला चिकित्सालय एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रो में तो महज सुविधाओं का अभाव देखा जाता है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केदो के तो ताले ही नहीं खुलते आए दिन इस बात की शिकायत ग्रामीण करते देखे जाते हैं लेकिन उनकी सुनने वाला है कौन।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य संस्थान होता है जिनपर सामुदायिक स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन का दायित्व होता है।गांवों और शहरों में स्थापित इन केन्द्रो कि जिम्मेदारी होती है कि अपने क्षेत्र के लोगों को उच्चतम स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य करे। इन केंद्रों के माध्यम से आम जनता को स्वास्थ्य संबंधी सही जानकारी मिलनी चाहिए और लोगों को बीमारियों से बचने और उचित इलाज करवाने में मदद देनी चाहिए लेकिन जब यहां के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खुलते ही नहीं है तो यह तमाम जिम्मेदारियां पूर्ण कैसे होगी महज चिन्हित दिनों में वैक्सीनेशन या फिर अन्य कार्यों के लिए ये खोले जाते हैं इसके अतिरिक्त शायद ही कभी लोगों को यहां से स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ मिलता है। उन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिए झोलाछाप डॉक्टरों की शरण मे जाना पड़ता है या फिर गांव से दूर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र या जिला चिकित्सालय की और कूच करना पड़ता है।
गौरतलब है कि जिले में जिला चिकित्सालय सीधी के अतिरिक्त सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सिहावल, रामपुर नैकिन, मझौली, चुरहट, सेमरिया और कुसमी संचालित है जहां से लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं लेकिन इन सामुदायिक स्वास्थ्य केदो का क्षेत्र काफी व्यापक और बड़ा है जिसके कारण इनके अंतर्गत कई-कई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किए गए हैं जहां डॉक्टर, एएनएम और स्टाफ नर्स की नियुक्ति भी की गई है साथ ही यह प्रावधान भी है कि यहां पर 9 से 2:00 बजे तक प्रतिदिन ओपीडी संचालित की जाएगी लेकिन कुछ जगहों को छोड़ दिया जाए तो बाकी जगह स्थिति बड़ी बदतर है। मैदानी स्तर पर जब लोगों से इन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के बारे में बात की जाती है तो वस्तुतः स्थिति सामने उभर कर आती है।
यहां नियुक्त डॉक्टर ज्यादातर अपने व्यक्तिगत क्लिनिको पर मरीजो को देखते पाए जाते हैं। जहां प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र खुलते भी हैं तो वहां लोगों का इलाज शायद ही कभी होता है रिस्क न लेने की नीति पर काम करते हुए इनके द्वारा ज्यादातर मरीजों को जिला चिकित्सालय या अन्य जगहों के लिए रेफर कर दिया जाता है।
कहने को तो इन प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रो कि स्थापना प्राथमिक चिकित्सा सेवाएं, वैक्सीनेशन, स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम, गर्भवती महिलाओं की देखभाल, बाल स्वास्थ्य, रोग निदान और उपचार, औषधालय सेवाएं एवं आपदा प्रबंधन जैसे कई महत्वपूर्ण कार्यों के लिए की गई है। लेकिन जिले में लचर स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के कारण यह तमाम कार्य केवल कागजों तक सीमित है कागजी घोड़े दौड़ाकर महज कोरम पूर्ति की जा रही है, जिसका परिणाम है कि प्रतिदिन भारी संख्या में मरीज जगह-जगह फैले झोलाछाप डॉक्टरो और जिला चिकित्सालय सहित प्राइवेट नर्सिंग होम में पहुंच रहे हैं। जबकि सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं।